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उदु॑ स्वा॒नेभि॑रीरत॒ उद्रथै॒रुदु॑ वा॒युभि॑: । उत्स्तोमै॒: पृश्नि॑मातरः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ud u svānebhir īrata ud rathair ud u vāyubhiḥ | ut stomaiḥ pṛśnimātaraḥ ||

पद पाठ

उत् । ऊँ॒ इति॑ । स्व॒नेभिः॑ । ई॒र॒ते॒ । उत् । रथैः॑ । उत् । ऊँ॒ इति॑ । वा॒युऽभिः॑ । उत् । स्तोमैः॑ । पृश्नि॑ऽमातरः ॥ ८.७.१७

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:7» मन्त्र:17 | अष्टक:5» अध्याय:8» वर्ग:21» मन्त्र:2 | मण्डल:8» अनुवाक:2» मन्त्र:17


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शिव शंकर शर्मा

प्राणायाम की दशा दिखलाते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (पृश्निमातरः) आकाशगामी मरुद्गण (स्वानेभिः) महानाद के साथ (उद्+ईरते) ऊपर उठते हैं। (रथैः) रमणीय गमनों के साथ (उद्) ऊपर उठते हैं (वायुभिः) पृथिवीस्थ वायुयों के साथ (उद्) ऊपर उठते हैं। तथा (स्तोमैः+उद्) मनुष्यों के प्रशंसावचनों के साथ ऊपर चढ़ते हैं ॥१७॥
भावार्थभाषाः - भौतिक और आध्यात्मिक दोनों अर्थ होते हैं, आध्यात्मिक इस प्रकार होगा कि प्राणायाम के समय भीतर महानाद होते हैं, उनकी गति अतिवेगवती होती है और मुख्य प्राण की स्तुति इन्द्रिय करते हैं, इत्यादि ॥१७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पृश्निमातरः) योद्धा लोग (स्वानेभिः) शब्दों के सहित (उदीरते, उ) स्थान से निकलते हैं (रथैः) यानों द्वारा (उद्) निकलते हैं (वायुभिः) वायुसदृश वीरों सहित (उदु) निकलते और (स्तोमैः) स्तोत्रों सहित (उत्) स्थान से निकलते हैं ॥१७॥
भावार्थभाषाः - जिन योधाओं के रथों के पहियों से पृथिवी गूँज उठती है, ऐसे शूरवीरों से ही रक्षा की भिक्षा माँगनी चाहिये ॥१७॥
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शिव शंकर शर्मा

प्राणायामदशां दर्शयति।

पदार्थान्वयभाषाः - पृश्निमातरः=आकाशगामिनः। मरुतः। स्वानेभिः=स्वानैः शब्दैः सह। उदीरते=उद्गच्छन्ति। रथैः=रमणीयैर्गमनैः सह उदीरते। वायुभिः=सह उदीरते। स्तोमैः=स्तुतिभिश्च सह उदीरते ॥१७॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (पृश्निमातरः) योद्धारः (स्वानेभिः) शब्दैः (उदीरते, उ) उद्गच्छन्ति (रथैः) यानैः (उद्) उदीरते (वायुभिः) वायुसदृशवीरैः (उदु) उदीरते (स्तोमैः) स्तोत्रैः (उत्) उदीरते “उ” पूरकः ॥१७॥